दो भाईयों के बल के आगे बड़े-बड़े परास्त, राजा ने सुना दी थी मौत की सजा, जानें क्या है इसका इतिहास
रतनपुर की 18 गढ़ों में से एक गढ़ छुरी था. इस गढ़ में लंबे समय तक दामा ध्रुवा नाम के दो भाइयों का राज था. बाद में दोनों ...अधिक पढ़ें
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अनूप पासवान/कोरबाः- कुछ इतिहास पन्नों पर दर्ज नहीं हो पाते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए लोककथा बनकर रह जाते हैं और उससे जुड़ी कुछ चीजें परंपरा का हिस्सा बन जाती हैं. छत्तीसगढ़ के एक गढ़ की ऐसी ही कहानी है, जिसमें दो भाई जो जननायक और कुख्यात डकैत हैं. बात करें इनके बल की, तो वे 500 की सेना को अकेले परास्त करने का बल रखते थे.
रतनपुर राजवंश की 18 गढ़ों में से एक गढ़ छुरी था. इस गढ़ में लंबे समय तक दामा ध्रुवा नाम के दो भाइयों का राज था. बाद में दोनों भाइयों को डकैत घोषित कर रतनपुर के तत्कालीन राजा बहरसाय के निर्देश पर सिंधु राय सेनापति ने मौत के घाट उतार दिया था. सिंधु राय के वंशज दृगपाल सिंह ने बताया कि आज भी दामा ध्रुवा की समाधि कोसगई पहाड़ के तराई में बसे ग्राम धनगांव में स्थित है. दामा ध्रुवा आज भी आदिवासियों के बीच राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने वाले जन नायक के रूप में प्रसिद्ध हैं. राजवंश की नजर में दोनों भाई कुख्यात डकैत थे.
राजा को लगान देने से किया मना
उन्होंने लोकल 18 को बताया कि आदिवासियों के मुताबिक क्षेत्र में लगातार पड़ रहे अकाल से आदिवासियों की हुई दुर्दशा को देखकर दोनों ने राजा को लगान देने से मना कर दिया था और राजाओं के खजाने लूटना शुरु किया. दामा ध्रुवा के इस कृत्य को राजद्रोह मानकर राजा बहरसाय ने सेनापति सिंधु राय के नेतृत्व में सेना को कोसगई भेजा. जहां राजा बहरसाय की सेना और दामा ध्रुवा बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में दामा ध्रुवा को पराजय का सामना करना पड़ा. दोनों भाइयों को सेनापति सिंधु राय ने मौत के घाट उतार दिया. सिंधु राय की इस वीरता से प्रभावित होकर 12वीं शताब्दी में रतनपुर के राजा बहरसाय ने छुरी गढ़ की जिम्मेदारी सिंधु राय को सौंप दी थी. तब से उनके वंशज स्वतंत्रता प्राप्ति तक यहां के जिम्मेदार रहे.
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संरक्षित करने की जरूरत
दृगपाल सिंह ने Local 18 को आगे बताया कि पुरातत्त्व विभाग ने कोसगाई के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए संरक्षित घोषित किया है. कोसगई कलचुरी राजवंश का काफी सुरक्षित किला था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहाड़ की ऊंचाई पर बैठकर दूर से दुश्मन को पहचाना जा सकता था. यहां हथियारों के संचालन हेतु दीवारों पर छेद निर्माण कराए गए थे. वहीं धनगांव से कुछ ही दूर गांव के बाहर दो लोहे के बड़े नगाड़े और कुछ खंडित मूर्तियां मौजूद हैं. गांव वालों की मान्यता है कि वहां मौजूद नगाड़ा दामा और ध्रुवा का है, जिसे संरक्षित करने की जरूरत है.
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